नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
अर्थ- हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।
बुरी आदतें बाद मे और बड़ी हो जाती हैं - प्रेरक कहानी
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
अर्थ- हे गिरिजा पति हे, दीन हीन पर दया बरसाने वाले भगवान शिव आपकी जय हो, आप सदा संतो के प्रतिपालक रहे हैं। आपके मस्तक पर छोटा सा चंद्रमा शोभायमान है, आपने कानों में नागफनी के कुंडल डाल रखें हैं।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
अस्तुति चालीसा शिविही, सम्पूर्ण कीन कल्याण ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ website निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥